Deepfake Images: कैसे काम करती है डीपफेक टेक्नोलॉजी? नकली वीडियो और फोटो की ऐसे करें पहचान

 

Deepfake Images: कैसे काम करती है डीपफेक टेक्नोलॉजी? नकली वीडियो और फोटो की ऐसे करें पहचान

Difference Between deep fake and Real Images टेक्नोलॉजी की मदद से AI का इस्तेमाल करके फेक वीडियो बनाई जाती हैं जो देखने में बिल्कुल असली लगती है लेकिन होती नहीं है। डीपफेक बनाना लोगों के लिए और भी आसान है क्योंकि कई ऐप और सॉफ्टवेयर उन्हें बनाने में मदद करते हैं। कोई वीडियो असली है या नकली इसकी जांच करते समय चेहरे पर बारीकी से ध्यान देने की जरूरत है।



आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) जनरेटेड नकली वीडियो जो नियमित यूजर्स को आसानी से हेरफेर कर सकते हैं, अब एक आम बात है। आज हम आपको एक ऐसी टेक्नोलॉजी के बारे में बताने वाले हैं, जिसक एस्तेमाल करके यूजर्स की फोटो और वीडियो का गलत इस्तेमाल किया जाता है।डीपफेक को एआई प्रोग्रामिंग द्वारा एक व्यक्ति को रिकॉर्ड किए गए वीडियो में दूसरे जैसा दिखने के लिए डिज़ाइन किया गया है। डीपफेक की मदद से डिजिटल मीडिया में आसानी से झूठी बातों को बड़े स्तर तक फैलाया जा सकता है, जो पूरी सच लगती हैं। आइए डिटेल से बताते हैं डीप फेक टेक्नोलॉजी (Deep Fake Technology) क्या है और इसका इस्तेमाल कहां होता है और इससे बचने का उपाय क्या है।

क्या होती है डीपफेक टेक्नोलॉजी

"डीपफेक" शब्द आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के एक रूप से लिया गया है जिसे डीप लर्निंग कहा जाता है। जैसा कि नाम से पता चलता है, डीपफेक डीप लर्निंग का इस्तेमाल नकली घटनाओं की तस्वीरें बनाने के लिए किया जाता है। डीप लर्निंग एल्गोरिदम खुद को सिखा सकते हैं कि डेटा के बड़े सेट से जुड़ी समस्याओं को कैसे हल किया जाए।

इस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल नकली मीडिया बनाने के लिए वीडियो और अन्य डिजिटल कंटेंट में चेहरों की अदला-बदली करने के लिए किया जाता है। इसके अलावा, डीपफेक केवल वीडियो तक ही सीमित नहीं हैं, इस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल अन्य फेक कंटेट जैसे इमेज, ऑडियो आदि बनाने के लिए भी किया जा सकता है।

कैसे काम करती है डीप फेक टेक्नोलॉजी?

डीप फेक बनाने के लिए कई तरीके हैं। हालांकि, सबसे आम डीप न्यूरल नेटवर्क का इस्तेमाल करने पर निर्भर करता है जिसमें फेस-स्वैपिंग टेक्नोलॉजी को लागू करने के लिए ऑटोएन्कोडर्स शामिल होते हैं। डीप फेक टेक्नोलॉजी की मदद से किसी दूसरे की फोटो या वीडियो पर किसी सेलिब्रिटी वीडियो के फ़ेस के साथ फ़ेस स्वैप कर दिया जाता है।

आसान भाषा में कहें तो इस टेक्नोलॉजी की मदद से AI का इस्तेमाल करके फेक वीडियो बनाई जाती हैं, जो देखने में बिलकुल असली लगती हैं लेकिन होती नहीं है। डीप फेक बनाना शुरुआती लोगों के लिए और भी आसान है, क्योंकि कई ऐप और सॉफ्टवेयर उन्हें बनाने में मदद करते हैं। GitHub एक ऐसी जगह भी है जहां भारी मात्रा में डीपफेक सॉफ्टवेयर पाए जा सकते हैं।

डीप फेक का पता कैसे लगाएं?

चेहरे पर बारीकी से दें ध्यान

डीप फेक वीडियो का पता लगाना एक ऐसा काम है जिसे सही टूल के बिना विशेषज्ञों के लिए भी अक्सर मुश्किल लगता है। हालांकि, मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (MIT) के शोधकर्ता कई सुझाव लेकर आए हैं जो आम लोगों को वास्तविक वीडियो और डीप फेक के बीच अंतर बताने में मदद कर सकते हैं। कोई वीडियो असली है या नकली, इसकी जांच करते समय चेहरे पर बारीकी से ध्यान देने की जरूरत है। ऐसा इसलिए है क्योंकि हाई-एंड डीपफेक हेरफेर लगभग हमेशा चेहरे का परिवर्तन होता है।

गाल और माथा पर दे ध्यान

चेहरे के जिन हिस्सों पर सबसे ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है वे हैं गाल और माथा। क्या त्वचा बहुत चिकनी या बहुत झुर्रीदार दिखाई देती है? क्या त्वचा की उम्र बालों और आँखों की उम्र के समान है? इसी तरह, अनुभवी डीप फेक स्पॉटर्स के लिए आंखें और भौंहें भी स्पष्ट संकेत हो सकती हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि रिसर्चरके अनुसार, डीप फेक वीडियो में छाया हमेशा उन जगहों पर दिखाई नहीं देती है जिनकी आप अपेक्षा करते हैं ।

होंठों का आकार और पलक झपकाने की स्पीड

डीप फेक मूंछें, साइडबर्न या दाढ़ी जोड़ या हटा सकते हैं, लेकिन वे अक्सर चेहरे के बालों के बदलाव को पूरी तरह से प्राकृतिक बनाने में असफल होते हैं। चेहरे के मस्सों के मामले में भी यही स्थिति है, जो अक्सर डीप फेक में यूजर्स नेचुरल या रियल नहीं दिखते हैं। होठों का आकार और रंग भी किसी वीडियो की वैलिडिटी के बारे में संकेत दे सकता है। पलक झपकाने की दर और स्पीड भी यह बता सकती है कि कोई वीडियो असली है या नकली।

डीप फेक टेक्नोलॉजी (Deep Fake Technology) के खतरे

डीप फेक टेक्नोलॉजी (Deep Fake Technology) की मदद से किसी को बदनाम किया जा सकता है। डीप फेक का इस्तेमाल खास तौर से औरतों और लड़कियों को निशाना बनाती है। किसी भी व्यक्ति की सोशल मीडिया प्रोफाइल से उसकी प्राइवेट फोटो लेकर उसके फेक पॉर्न वीडियो बनाए जा सकते हैं। किसी नेता का MMS बनाया जा सकता है। इस टेक्नोलॉजी की मदद से ऐसे भाषण के वीडियो जारी किए जा सकते हैं जो उसने कभी दिए नहीं है।

Previous Post Next Post